तापमान में गिरावट से आलू की फसल को नुकसान हो सकता है। अक्सर देखा गया कि पाला के कारण फसल बरबाद हो जाती है। क्योंकि पाले के प्रकोप से आलू के पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, कड़ाके की ठंड ने किसानों के सामने गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। पिछले कई दिनों से चल रही शीतलहर के साथ रात में पड़ रहे कोहरे और पाले से सब्जी की खेती को नुकसान पहुंच सकता है। ठंड और पाले से फसलें प्रभावित हुई हैं। सबसे ज्यादा आलू की फसल को नुकसान की आशंका है। पाला से आलू की बरबाद हो जाती है पाले के प्रकोप से आलू के पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं। इसलिए किसान सावधान रहें, राजेन्द्र केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा समस्तीपुर के पौध सुरक्षा विभाग के हेड डॉ. एसके सिंह के अनुसार कड़ाके ठड़ के कारण वातावरण में नमी बढ़ती है और रोशनी कम होने के कई दिनों तक बदली रहती है तब पिछेती रोग का प्रकोप पौधे पर शुरू होता है। यह रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस नामक कवक के कारण फैलता है। आलू का पछेती झुलसा रोग बेहद विनाशकारी है। यह रोग 4 से 5 दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है। उन्होंने बताया कि इस रोग में पहले पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले-गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे और काले हो जाते हैं। इसके कारण आलू की फसल को 100 फीसदी तक नुकसान होने का खतरा रहता है। इस रोग के कारण पत्तियों के बीमार होने से आलू का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है। डॉ. एसके सिंह के अनुसार इसके रोकथाम के लिए सबसे ज़रूरी है बीमारी को पहचाना जाए, बीमारी कोई भी हो जब तक इसकी पहचान नहीं होगी तो इसका प्रबंधन भी नहीं होगा। पछेती झुलसा बीमारी की पहचान या लक्षण को पहचानने के लिए सुबह-सुबह खेत में जाकर आलू के पौधे की सबसे नीचे की पट्टी की सतह को पलटने पर सफ़ेद फफूंदी यानि रुई जैसी कोई संरचना दिखाई दे तो तुरंत दवा का छिडकाव करें । उन्होंने बताया किसान इसके रोकथाम के लिए जरूरी है फफुंदनाशक दवाओं का प्रयोग करें । रोग लगने के बाद पूरी फसल नष्ट 4 से 5 दिन में नष्ट हो सकती है ।
कैसे करें इस खतरनाक रोग की रोकथाम?
अगर इस रोग के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं तब तक मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 फीसदी की दर से यानि दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। क्योकि, एक बार रोग के लक्षण दिखाई देने के बाद मैंकोजेब नामक देने का कोई असर नहीं होगा, इसलिए जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । इसी प्रकार फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर में घोलकर छिड़काव कर सकते है। मेटालैक्सिलऔर मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर भी छिड़काव किया जा सकता है। एक एकड़ में 350 मिली से लेकर 400 मिलीलीटर दवा के घोल की जरूरत होगी। छिड़काव करते समय पैकेट पर लिखे सभी निर्देशों का पालन जरुर करें। आलू के किसान अगले 10-15 दिनों तक अपने खेतों में देर से होने वाले झुलसा रोग की लगातार निगरानी करें ।