जलवायु परिवर्तन के सभी मुख्य कारणों में से एक मुख्य कारण खेतों में रसायनों का अंधाधुंध उपयोग है। इसीलिए जैविक खेती की सलाह दी जाती है। सरकार द्वारा भी जैविक खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। कुछ लोग जैविक खेती करने लगे हैं, तो कुछ नई खेती करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
आज हम आपको जैविक खेती के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य बताएंगे जिससे आप अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। दरअसल, जैविक खेती में डीएपी-यूरिया जैसे उर्वरकों की बजाय सड़ी हुई खाद या वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। वर्मीकम्पोस्ट को केंचुआ खाद के रूप में जाना जाता है। जैविक खेती में जीवामृत का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अब मैं आपको जीवामृत के बारे में बताता हूँ। अब क्या आप जानते हैं कि जीवामृत का रूप तरल प्रकार का होता है, जैसे गाय का मूत्र, गुड़ का पानी और बेसन का घोल। नीम की पत्ती को उबालकर तरल बनाया जाता है, क्योंकि इसे गोबर, कीटनाशक स्प्रे के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है।
ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता कि जैविक खेती में कितनी खाद डाली जाती है। आपको बता दें कि अगर आप पहली बार जैविक खेती करने जा रहे हैं तो बुवाई से पहले एक एकड़ खेत में कम से कम 10 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट डालें। इसके बाद फसल में पहला पानी देने के समय 5 क्विंटल खाद डालें। अगर फसल में बालियां निकलने से पहले 2 क्विंटल खाद दी जा सकती है और जैविक खेती शुरू होने के बाद दूसरे साल की शुरुआत में करीब 7 क्विंटल खाद देनी चाहिए, आधी पहली सेल या सिंचाई के बाद, 3.5 क्विंटल खाद। मिट्टी में सुधार के बाद जैविक खेती से भूजल और हवा की गुणवत्ता में भी काफी सुधार होता है। जैविक खेती से मिलने वाली उपज रासायनिक खेती से काफी बेहतर होती है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। जैविक तरीके से उगाई गई चीजों का लगातार इस्तेमाल करके आप कई गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं।
जैविक खेती का पूरा हिसाब-किताब तो हम सभी समझ गए। अब जैविक खेती के फायदों के बारे में भी जान लेते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता में काफी वृद्धि होगी। वर्मीकम्पोस्ट और शिवामृत के इस्तेमाल से मिट्टी में स्वस्थ बैक्टीरिया बढ़ेंगे, जिससे मिट्टी ढीली और पानीदार बनेगी।